एक नयी कविता / नज़्म बनायी है, ज़रूर पढ़के बताइए कैसी लगी -
पतंगी काग़ज़ उड़ते रहे,
नफ़रत दिलो मे बढ़ती रहे(१)
रिश्ते बिखरते रहे,
उनकी रोटियाँ सिकती रही (२)
सर्दियों मे गर्मी कोई चिता ही जाने,
चिराग़ों का सुकून कोई पिता हाई जाने (३)
अग्नि परीक्षा का दर्द मैय्या सीता ही जाने,
वंश के विनाश की पहेली भगवद गीता ही जाने (४)
आलम है ऐसा कि आए ना बलम फिर,
घाव की तो आदत है पर कुरेदो ना ज़खम फिर (५)
वादों का क्या कहना इरादे तक टूट जाते है,
ग़ैरों का गिला जब अपने ही लूट जाते है (६)
मंजर हो अलग जब साहिल भी सराब लगता है,
समंदर के शार्क को कुवें का मेंढक कमियाब लगता है (७)
तन्हाई की तबस्सुम है हमसे क़लम भी मुकर गए,
अल्फ़ाज़ थे दिल मे; इज़हार आंसू कर गए (८)